Posts

Showing posts from September, 2016

बिंदु

एक बिंदु हूँ मैं। अनंत  हूँ मैं। समर्पण हूँ, विश्वास की लक्ष्मण रेखा। मशाल हूँ, जज़्बातों की नाज़ुक डोर हूँ मैं। नदी की धारा सी बहती, एक पतंग, उड़ चली जाने किस ओर हूँ मैं। धैर्य हूँ, सागर की उठती लहरों सी विशाल। हवा के झोंके की ताज़गी, पुष्प की महक हूँ मैं। खनकती हँसी हूँ मैं। अनकहे बोल हूँ मैं। रंग हूँ, ख्वाब हूँ मैं। एक बिंदु हूँ मैं। अनंत हूँ मैं।।                                         शिखा गुलिया