यादें
यादें, यादें ही तो रह जाती हैं
वक्त को समेट लेती हैं खुद में,
थाम लेती हैं पलों को।
मुट्ठी में रेत सा फिसलता चला जाता है समय,
निरंतर, अविचलित सा ।
पुराना, जर्जर, बेरंग सा वक्त का कोई दरवाज़ा,
दूर किसी कोने में मन के,
एकाएक खटखटा जाती हैं यादें ।
अजीब फितरत है इनकी, ढेरों मिजाज़, रंग, रूप।
कभी होठों के कोनों पर तैरती हँसी सी दिखती हैं ये,
तो कभी पलकों पर धरे आँसुओं सी।
यादें, यादें ही तो रह जाती हैं।
शिखा गुलिया
वक्त को समेट लेती हैं खुद में,
थाम लेती हैं पलों को।
मुट्ठी में रेत सा फिसलता चला जाता है समय,
निरंतर, अविचलित सा ।
पुराना, जर्जर, बेरंग सा वक्त का कोई दरवाज़ा,
दूर किसी कोने में मन के,
एकाएक खटखटा जाती हैं यादें ।
अजीब फितरत है इनकी, ढेरों मिजाज़, रंग, रूप।
कभी होठों के कोनों पर तैरती हँसी सी दिखती हैं ये,
तो कभी पलकों पर धरे आँसुओं सी।
यादें, यादें ही तो रह जाती हैं।
शिखा गुलिया
Wrods that you use are really amazing 😉 time & memories have opposite relation but u use both in a right direction keep it up 👍🏻
ReplyDeleteThankyou so much Himanshu. Read my latest work and let me know!! :)
Delete