छींटे

उधेड़ बुन खत्म हुई ।
लंबे से सन्नाटे के बाद,
आज एक आवाज़ सुनाई दी।
लगा जैसे सिसकी थी
उसकी गून्ज पलकों को नम कर गई
मन हल्का हो गया ।
रंग चढ़ता है,
उतर भी जाता है।
कभी कभी कुछ छींटे रह जाती हैं,
वक्त लगता है जिनके छूटने में।
उनका ताल्लुक ज़रूरी नहीं हमेशा खुशी से हो।
रंग सिर्फ़ लाल, पीले, गुलाबी ही तो नहीं?
स्याह रंग के छींटे आज धुल गए।
मन का दामन फिर सफ़ेद हो गया।
दाग़ ज़िद्दी थे।
कल का चोगा उतार दिया।
शाम ढल गई।
आज नया सवेरा है।।
                                  शिखा गुलिया

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