ऊपर वाले कमरे की खिड़की

(March 30th, Monday
Day 6 of Lockdown)

सोमवार का दिन
सुबह और दोपहर के बीच का समय
आम दिनों से अलग
आजकल सभी दिन यूँ तो आम से अलग ही हैं
फिर भी एक जैसे से हैं
बैठती हूँ अकसर यहाँ
लेकिन आज शोर ज़्यादा है
शोर नहीं, कर्कश नहीं है
हलचल! आज हलचल ज़्यादा है बाहर
किसी घर से कूकर की सीटी की आवाज़, एक, दो, तीन
बैट से टकराकर, तीन टप्पे खाने के बाद लपक ली गई प्लास्टिक की गेंद की आवाज़
बगल के आँगन से गपशप के चटखारों और ठहाकों की,
और फिर किसी बच्ची की खनकती हुई खिलखिलाती हँसी की आवाज़
चिड़ियों, कौवों, गिलहरियों और कबूतरों के सुर
हवा की आवाज़, मंद लेकिन स्पष्ट और सुंदर
न मोटर का शोर, न स्कूटर का
न ही वो स्वाभाविक सा मन का शोर
बस धीमी आँच पर हौले हौले पकते रिश्तों के स्वर
कुदरत के गीत।
                          शिखा गुलिया

Comments

  1. Bs jisne heyyy likha hai insta pr aaj uspr apna no. De de bahut bada offer hai mere pass aapke writing skills ke liye....

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